Married Daughters Property Rights: भारत में बेटियों के संपत्ति अधिकारों की लड़ाई लंबे समय से चल रही है। लेकिन 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो शादीशुदा बेटियों को पिता की कृषि भूमि और पैतृक संपत्ति में बराबरी का हक देगा। खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां पुराने कानून में विवाह के बाद बेटियों के अधिकार खत्म हो जाते थे, अब बड़ा बदलाव आ रहा है। यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA) 2005 के संशोधन पर आधारित है।
आज इस ब्लॉग में हम सरल भाषा में बताएंगे – पुराना कानून क्या था, नया फैसला क्या कहता है, UP में बदलाव, और आप कैसे क्लेम कर सकती हैं।
पुराना कानून: शादीशुदा बेटियों के साथ भेदभाव क्यों?
UP जमींदारी उन्मूलन कानून 2006 की धारा 108
उत्तर प्रदेश में पुराने कानून (UP Revenue Code 2006, धारा 108) के तहत, पिता की मृत्यु पर कृषि भूमि का उत्तराधिकार पहले विधवा पत्नी, पुत्र और अविवाहित पुत्री को मिलता था। शादीशुदा बेटियां बाहर हो जाती थीं, क्योंकि मान्यता थी कि वे ससुराल की संपत्ति पर निर्भर होंगी। अगर कोई संतान न हो, तो माता-पिता को, फिर विवाहित पुत्री को – लेकिन अविवाहित को प्राथमिकता।
समस्या क्या थी?
यह भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के खिलाफ था। कई केसों में बेटियां अदालत गईं, लेकिन रेवेन्यू रिकॉर्ड्स में नाम न जुड़ने से अधिकार छिन जाते थे। HSA 2005 ने पैतृक संपत्ति में बेटियों को कोपार्सनर बनाया, लेकिन UP जैसे राज्यों में कृषि भूमि पर राज्य कानून हावी थे।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 2025
HSA 2005 संशोधन और रेट्रोस्पेक्टिव प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में स्पष्ट किया कि शादीशुदा बेटियां भी पिता की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति में बराबर हकदार हैं। विनीता शर्मा vs राकेश शर्मा (2020) के फैसले को मजबूत करते हुए, कोर्ट ने कहा कि 9 सितंबर 2005 के बाद जीवित पिता की बेटियां, चाहे शादीशुदा हों, कोपार्सनर हैं। यह रेट्रोस्पेक्टिव है – पिता की मृत्यु 2005 से पहले भी हो, बेटी का जन्म सिद्धांत लागू। कृषि भूमि पर भी HSA लागू, राज्य कानूनों को ओवरराइड कर।
UP में संशोधन: धारा 108 में बदलाव
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में धारा 108 में “विवाहित” और “अविवाहित” शब्द हटाने का प्रस्ताव पास किया। अब बेटियां (शादीशुदा या नहीं) पुत्रों की तरह बराबर हिस्सा पाएंगी। कैबिनेट मंजूरी के बाद विधानसभा में बिल पेश, 2025 के अंत तक लागू। एक हालिया UP केस में, मृतक पिता की भूमि रिकॉर्ड्स में शादीशुदा बेटियों के नाम जोड़े गए।
नए नियम के फायदे: महिलाओं का सशक्तिकरण
आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक बदलाव
- बराबरी का हक: बेटियां अब 1/3 या समान हिस्सा पा सकेंगी, चाहे स्व-अर्जित या पैतृक संपत्ति।
- कृषि भूमि पर अधिकार: UP जैसे कृषि-प्रधान राज्य में, बेटियां रेवेन्यू रिकॉर्ड्स में नाम जुड़वा सकेंगी।
- परिवार में न्याय: भाई-बहन के रिश्ते मजबूत, दहेज जैसी कुरीतियां कम।
- राष्ट्रीय प्रभाव: अन्य राज्य (जैसे कर्नाटक) भी फॉलो करेंगे, HSA 2005 पूरे देश में लागू।
यह फैसला महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाएगा, खासकर विधवाओं या तलाकशुदा बेटियों के लिए।
कैसे क्लेम करें? स्टेप-बाय-स्टेप गाइड
दस्तावेज और प्रक्रिया
- परिवार रजिस्टर चेक: पिता की मृत्यु प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, और परिवारिक सदस्यता (परिवारिक सादस्या) लिस्ट।
- रेवेन्यू ऑफिसर से अप्लाई: तहसील या SDM ऑफिस में म्यूटेशन (नामांतरण) आवेदन दें। फॉर्म में बेटी का नाम जोड़ें।
- अदालत का रास्ता: अगर विवाद हो, तो सिविल कोर्ट में पार्टिशन सूट फाइल। सुप्रीम कोर्ट फैसले का हवाला दें।
- डेडलाइन: 2005 से पहले के केसों में भी क्लेम, लेकिन 3 साल की लिमिटेशन पीरियड से बचें।
टिप: वकील से सलाह लें, खासकर अगर विल (वसीयत) हो। UP सरकार पोर्टल (uprevenue.gov.in) पर ऑनलाइन अप्लाई।
FAQ: आपके सवालों के जवाब
Q1: क्या शादीशुदा बेटी को पिता की स्व-अर्जित संपत्ति मिलेगी?
हां, अगर पिता ने वसीयत न की हो, तो HSA के तहत बेटी क्लास-1 हेयर है। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में अरुणाचला गौंडर केस में पुष्टि की।
Q2: UP में नया नियम कब लागू होगा?
2025 के अंत तक, विधानसभा पास होने के बाद। तब तक पुराने केस कोर्ट में चैलेंज करें।
Q3: क्या सभी राज्यों में लागू?
HSA केंद्रीय कानून है, लेकिन कृषि भूमि पर राज्य कानून। सुप्रीम कोर्ट ने सभी को बराबरी का निर्देश दिया।
Q4: अगर भाई नाम न जोड़ें तो क्या?
कोर्ट में RTI या म्यूटेशन केस फाइल। कई जजमेंट्स में बेटियों को मेस्ने प्रॉफिट्स भी मिले।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का 2025 फैसला शादीशुदा बेटियों को संपत्ति में बराबरी देकर महिलाओं के सशक्तिकरण को मजबूत करेगा। UP में धारा 108 का संशोधन पुराने भेदभाव को खत्म करेगा, और HSA 2005 पूरे देश में लागू होगा। यह न सिर्फ आर्थिक न्याय देगा, बल्कि समाज में बेटा-बेटी की समानता लाएगा।
अगर आप प्रभावित हैं, तो तुरंत वकील से मिलें या uprevenue.gov.in चेक करें। कमेंट में शेयर करें, यह फैसला आपके लिए क्या मायने रखता है? दोस्तों को टैग करें और अपडेट्स के लिए सब्सक्राइब करें!