Property Rights Update: दोस्तों, परिवार में प्रॉपर्टी का बंटवारा तो हर घर का सिरदर्द होता है, खासकर जब बात बेटी के हक की हो। पुरानी सोच कहती है कि शादी के बाद बेटी का कोई अधिकार नहीं, लेकिन कानून कुछ और कहता है। 9 अक्टूबर 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर पुष्टि की कि पैतृक संपत्ति में बेटी का बेटे जितना ही हक है। साथ ही, 5 सितंबर 2025 से शुरू हुई डिजिटल रजिस्ट्री प्रक्रिया से महिलाओं को उनका हक आसानी से मिलेगा। ये बदलाव न सिर्फ पारदर्शिता लाएंगे, बल्कि पुरानी भ्रांतियों को भी तोड़ेंगे। अगर आप गांव या शहर में रहते हैं और प्रॉपर्टी विवाद से जूझ रहे हैं, तो ये गाइड आपके काम आएगी। चलिए, सरल शब्दों में सब समझते हैं – कानून आपकी रक्षा करेगा!
पैतृक vs स्व-अर्जित संपत्ति: बेटी का हक कैसे तय होता है?
भारतीय कानून (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के 2005 संशोधन) के मुताबिक, अगर संपत्ति पैतृक है – यानी दादा-परदादा से चली आ रही – तो बेटी को बेटे के बराबर हिस्सा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में कई फैसलों में ये साफ किया कि बेटी कोपार्सिनर (साझेदार) है, चाहे वो शादीशुदा हो या नहीं। उदाहरण के लिए, मल्लेश्वरी बनाम के. सुगुना मामले में कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया और बेटी के हक को बहाल किया।
लेकिन अगर पिता ने खुद कमाकर खरीदी हो, तो ये स्व-अर्जित संपत्ति है। यहां पिता की मर्जी राज करती है – वो वसीयत लिखकर किसी को भी दे सकते हैं। बेटी का दावा तभी बनेगा जब वसीयत न हो। अगर बेटी पिता से पहले गुजर जाती है, तो उसके बच्चे भी हक मांग सकते हैं। ये नियम ट्राइबल महिलाओं पर भी लागू होते हैं, जहां कोर्ट ने बराबरी का हक दिया।
2025 के नए नियम: डिजिटल रजिस्ट्री से बेटियों को मजबूत सुरक्षा
1 सितंबर 2025 से लागू नए रजिस्ट्रेशन बिल ने प्रॉपर्टी रजिस्ट्री को पूरी तरह डिजिटल बना दिया। अब QR कोड से तुरंत वेरिफिकेशन, फ्रॉड रिस्क कम और महिलाओं के लिए रिबेट्स। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में 2026 तक रेंटल और ट्रांजेक्शन डिजिटल होंगे, जहां महिलाओं को ओनरशिप पर छूट मिलेगी। कर्नाटक में भी पारदर्शिता के लिए सुधार आए हैं। ये बदलाव बेटियों को विवादों से बचाएंगे – अब रजिस्ट्री ऑनलाइन, कोई छेड़छाड़ नहीं। सरकार का मकसद: महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण।
संपत्ति बंटवारे का तरीका: वसीयत के साथ या बिना
अगर पिता बिना वसीयत के चल बसे, तो पैतृक संपत्ति बेटे, बेटी और पत्नी (मां) में बराबर बंटेगी। हाईकोर्ट ने ट्राइबल केस में भी यही कहा। लेकिन वसीयत हो तो उसी के अनुसार – अगर सिर्फ बेटे का नाम हो, तो बेटी को चुनौती देनी पड़ेगी। डिजिटल रजिस्ट्री से ये प्रक्रिया तेज और सुरक्षित हो गई।
आम भ्रांतियां: जो समाज में फैली हैं, लेकिन कानून कहता कुछ और
सबसे बड़ी गलतफहमी: शादी के बाद बेटी का हक खत्म। लेकिन 2005 संशोधन से ये मिथक टूटा – शादीशुदा बेटी भी बराबर हकदार। दूसरी: सिर्फ बेटे को मिलेगी। कोर्ट ने साफ कहा, बेटियां भी कोपार्सिनर। ट्राइबल इलाकों में भी अब बेटियां हक मांग सकती हैं।
FAQ: प्रॉपर्टी हक से जुड़े आपके सवाल
Q1: शादीशुदा बेटी को पैतृक संपत्ति मिलेगी? A: हां, बेटे के बराबर। 2005 संशोधन से लागू।
Q2: 2025 डिजिटल रजिस्ट्री कैसे काम करेगी? A: QR कोड से वेरिफिकेशन, ऑनलाइन प्रोसेस – फ्रॉड रिस्क कम।
Q3: वसीयत न हो तो बंटवारा कैसे? A: बेटा, बेटी, पत्नी में बराबर। कोर्ट में अपील करें।
Q4: ट्राइबल महिलाओं का हक? A: सुप्रीम कोर्ट ने बराबरी दी, कस्टमरी लॉ के बावजूद।
Q5: कहां अप्लाई करें? A: लोकल रेवेन्यू ऑफिस या bhulekh.gov.in पर चेक।
निष्कर्ष:
2025 के सुप्रीम कोर्ट फैसले और डिजिटल रजिस्ट्री से बेटियां अब बिना डर के अपना हक मांग सकेंगी। ये बदलाव न सिर्फ कानूनी बल देंगे, बल्कि समाज को भी बदलेगा। बहनों, अगर विवाद हो तो वकील से बात करें; भाइयों, बराबरी सिखाएं। कमेंट में अपनी स्टोरी शेयर करें, सब्सक्राइब करें अपडेट्स के लिए। जय हिंद, बेटी बचाओ!